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बुधवार, 31 मार्च 2021

कुछ तो बात है

 कुछ तो बात है



रिश्तों के बीच अपने पन का अहसास,


और होती छोटी नोक झोंक,


फिर भी रिश्ता गहरा और मजबूत,


रिश्तों में कुछ तो बात है,





हुई अनबन, और मतभेद,


छोटी सी बात पर हुआ मनभेद,


फिर भी अहसास हैं बाकी फ़िक्र की,


रिश्तों में कुछ तो बात है,





कितना भी अपना हो रिश्ता, निभाने की डगर होती है कठिन,


लेकिन हर मुश्किल से बचाता भी यही है,


रिश्तों में कुछ तो बात है,





खुशी के पल जीता साथ-साथ,


कितना भी दुःख हो,


परिवार बांटता साथ-साथ 


नाज़ुक अहसासों का ये रिश्ता,


सचमुच, रिश्तों में कुछ तो बात है,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


31/03/2021

रविवार, 28 मार्च 2021

कभी सोचा न था, ये दिन भी आएगा,

 कभी सोचा न था,,,,


कभी सोचा न था, ये दिन भी आएगा,



सूनी होंगी सड़कें कई दिन,


मोर भी सड़कों पर इतरायेगा,



छुट्टियां होंगी रोज़ ,और एक दिन


 छुट्टियों से मन भर जाएगा,




खाएंगे रोज़ घर का खाना,


पानी पूरी को जी ललचाएगा,




रोज़ होंगी स्कूल की छुट्टियां ,


होली से होली स्कूल ना जाना होगा,




मोबाइल पर मैडम की डांट,


ऑनलाइन भी पढ़ना होगा,




मम्मी बैठ टी वी देखेंगी,


पापा ढेरों पकवान बनाएंगे,




दिन भर लूडो कैरम खेलेंगे,


छत पर पतंग भी उड़ाएंगे,




रामायण और महाभारत भी,


टी वी पर देख पाएंगे,




फिर आया वो वक्त पुराना,


काले धुएँ से छुटकारा पाना,




शुद्ध हवा, और पक्षियों की चहचहाहट,


फूलों पर भँवरों का गुँजन,




कभी सोचा न था, ये दिन भी आएगा,



✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


27/03/2021

शुक्रवार, 26 मार्च 2021

मन


 


*मन*




ये मन का विचरना,



विचारों के झंझावात में 


यूँ मन का उलझना,




सुलझाने मन के तारों का 


यूँ अतीत में खो जाना,




यादों में अतीत के जाकर 


यूँ कशमकश में फँस जाना,




अकेले में इन सारे खयालों से 


बाहर आने की कोशिश करना,




मन की राहों में आगे बढ़ते , 


आशाओं की सीढ़ीयाँ चढ़ते,


अपनी अकेलेपन की सोच से बाहर निकलना,,,,,,,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


26/03/2021

बुधवार, 24 मार्च 2021

चढ़ा जो रंग ऐसा

 *चढ़ा जो रंग ऐसा*


चढ़ा जो रंग ऐसा, पी के प्रीत का,


जग भी मैं भूल गई, जाने कब पी की हो गई,





चढ़ा जो रंग ऐसा, माँ की ममता का,


मैं वारी न्यारी गई, सुध बुध भी खो गई,





चढ़ा जो रंग ऐसा, संस्कारों का,


संस्कृति को स्वीकार कर उसमें समाहित हो गई,





चढ़ा जो रंग ऐसा, देशभक्ति का,


करके त्याग वतन के लिए मैं न्यौछावर हो गई,





चढ़ा जो रंग ऐसा , दोस्ती का,


निभा कर दिल से रिश्ता सब दुख मैं भूल गई,




चढ़ा  जो रंग ऐसा , होली की मस्ती का,


टेसू के फूलों की लाली में खुशी से सराबोर हो गई,




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


24/03/2021

लॉकडाउन के साइड इफ़ेक्ट

 *लॉकडाउन के साइड इफ़ेक्ट*


 सुयश का ऑफिस घर से 100 कि.मी. दूर था तो उसने वहीं ऑफिस के पास 1 रूम ले लिया रहने के लिए। 8-10 दिन में एक बार सुयश घर आता। घर में बच्चों का दिन भर उछल- कूद करना तेज आवाज में टी वी या गाने चलाना सुयश को बिल्कुल पसंद नहीं था। फिर घर आकर सुयश सीमा से भी यही आशा करता कि वो कम से कम बातें करें। बेचारी दिन भर घर का काम निपटाती और सास- ससुर की सेवा करती सीमा शाम को सुयश का मूड खराब होने के डर से शांत ही रहती तो कभी सुयश की इस हरकत से परेशान होकर उस पर भड़क भी जाती । इसलिए सुयश काफी दिनों बाद घर आता उसे तो घर में शांति चाहिए होती थी। इधर कोरोना के बढ़ते केस ने स्कूलों की छुट्टियां कर दी तो बच्चे घर पर ही थे तो सुयश अभी 10 दिन बाद भी घर नहीं आना चाहता था। फिर एक दिन की लॉकडाउन की घोषणा सुनकर सुयश भी खुश हुआ चलो आज उसे 1 दिन की छुट्टी तो मिली आज वो अपने रूम में जी भरकर सोएगा। लेकिन ये क्या,,,,? जल्दी ही खबर आ गई कि अब लॉकडाउन 21 दिनों का होगा। सुयश ने सोचा अच्छा ही हुआ जो वो घर पर नहीं है नहीं तो दिन भर उसे बच्चों का चीखना चिल्लाना और सीमा की शिकायतें सुनना पड़ता। धीरे - धीरे दिन बीतने लगे। शुरू के कुछ दिन तो सुयश ने बड़े आराम से बिताए पर धीरे धीरे उसे घर का अकेलापन सताने लगा। शांत रहे भी तो आखिर कितने दिन....? अब उसे अपने परिवार की याद सताने लगी, बच्चों की आवाज़ सुनना चाहता था वो, और सीमा की शिकायतें भी। 21 दिन पूरे होने को थे , सुयश खुश था कि अब वो अपने घर जा सकेगा लेकिन उसकी ये खुशी मायूसी में बदल गई जब लॉकडाउन अनिश्चित समय के लिए बढ़ा दिया गया। उसे रोना ही आ गया। अब उसे अपने परिवार की कीमत समझ मे आने लगी। जैसे तैसे उसने स्पेशल पास बनवाया और निकल पड़ा खुशी खुशी अपने घर की ओर,,,,, । दरवाज़े की घंटी बजी। अभी लॉकडाउन में कौन आया है, डरते डरते सीमा ने दरवाजा खोला, देखा,,, दरवाज़े पर सुयश खड़ा है। सीमा को सामने देख सुयश खुशी से उछल पड़ा। अंदर आया देखा दौड़ कर बच्चों ने पहले टी वी ऑफ किया फिर दुबक के पर्दे के पीछे खड़े हो गए। सुयश को अब तक अपनी गलती का अहसास हो चुका था। उसने नहाधोकर कपड़े बदले और अक्सर अपने कमरे में घुस रहने वाला सुयश बाहर आकर हॉल में बच्चों के साथ बैठ गया। पहले टी वी चालू किया फिर पकोड़ों की फरमाइश की । फिर बच्चों के साथ कैरम खेलने लगा। बच्चे पहले सहमे हुए थे लेकिन धीरे धीरे पूरा घर बच्चों के साथ सुयश की आवाजों और ठहाकों से गूंजने लगा। आखिर इस लॉकडाउन ने उसे परिवार का महत्व सीखा दिया था। और सीमा लॉकडाउन के इस साइड इफ़ेक्ट को देखकर खुश थी। इधर सुयश ने भी फैसला कर लिया था कि वो जल्दी ही अपने तबादले की अर्जी  दे देगा और अब कभी अपने परिवार से दूर नहीं रहेगा।



✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


23-03-2021

रविवार, 21 मार्च 2021

लौटा दो उसे उसका नीड़

*लौटा दो उसे उसका नीड़*




तिनका तिनका चुन कर लाती,


घास पत्तों से सीते जाती,


बड़ी मेहनत से फिर उसे,


नीड़ का रूप वो देती


फुदक फुदक कर फिर, 


डाल डाल पर जाती,


कभी इस डाली कभी उस डाली,


फुले ना वो समाती,





फिर एक दिन ऐसा हुआ,


डाली कर दी गई पेड़ से अलग,


नीड़ जो बनाया था उसने,


वो भी हो गई पेड़ से अलग,


फुदक फुदक कर अब बैठे कहाँ,


पानी से बचने अब जाए कहाँ,


डाली संग नीड़ भी हो गई,


पेड़ से अलग,


जैसे किसी ने कर दिया हो,


उससे ही उसको अलग,





रहती अब वो उदास सी,


गुमसुम सी, चुपचाप सी,


फुदकने को अब डाली नहीं,


रहने को अब नीड़ नहीं,


आसरा जो था,

वो छीन गया,


उसका दिल भी जैसे टूट गया,


डाली ही नहीं, पेड़ भी जाने को है,


उसे लगा जैसे, उसका वजूद ही जाने को है,




बचा लो पेड़ों को,


बचे रहने दो उसका नीड़,


सोचो भला, बिन घर,


कैसे रहोगे तुम रात दिन,


तिनका तिनका उसने भी जोड़ा है,


अपनी मेहनत से उसे सींचा है,


लौटा दो उसे उसका घर,


लौटा दो उसे उसका नीड़






✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


20/03/2021

शनिवार, 20 मार्च 2021

असीम संभावनाओं का आकाश


 



*असीम संभावनाओं का आकाश*


एक राह अनजानी सी, 


दूर क्षितिज तक जाती,


सीधी दिखती राह,


नित कठिन होती जाती,


राह पर बढ़ना है,


बढ़ते ही जाना है,


कोशिश की एक आस,


मन में जगाना है,


क्योंकि दूर तक फैली है,


कुछ कर दिखाने की राह,


सफलता बाट जोह रही है जहाँ,


बस अवसर तुम तलाशो वहाँ,


क्योंकि ये है,


असीम संभावनाओं का आकाश


क्योंकि ये है,


असीम संभावनाओं का आकाश






✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


19/03/2021

बुधवार, 17 मार्च 2021

प्रकृति/कुदरत

 प्रकृति का रूप है सुन्दर,


ये धरा, माँ बन सँवारती जैसे,


ये आसमाँ पिता बन समेटता हमेँ,


ये नदियाँ , ये पर्वत, ये हवाएँ खिलखिलाते,


ये झरने, ये बगीचे, ये पेड़-पौधे चहुँ ओर हरियाली बिखेरते, 


ये सूरज की रोशनी, ये चाँद की ठंडक, तारे भी आसमाँ में टिमटिमाते,


ये चिड़ियों की चहचहाहट, ये भँवरे का गुँजन, 


ये जंगलों में जीव जन्तुओं का विचरण,


हर पल हमें जीवन का अहसास कराते,


प्रकृति की गोद में हमें विचरण कराते,


हे मानव!! समझो तुम कुदरत का मोल,


नहीं करो तुम इससे खेल,


धरा को श्रृंगार विहीन कर तुम सुख न पाओगे


कुदरत से खेल कर स्वयं का अस्तित्व भी न बचा पाओगे,


अभी भी समय है, कर लो ये तुम ये जतन,


प्रकृति का मोल समझ ,ले लो तुम ये वचन,


करोगे प्रकृति की रक्षा, हर पल हर दम,


प्रकृति है हम सबकी,प्रकृति से हैं हम,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


15/03/2021

मन्नत का धागा

 *मन्नत का धागा*



जाकर मंदिर, और दरगाह


माँगी जो उसने दुआ,


और विश्वास का बांधा एक मन्नत का धागा,






नाज़ुक तेरे हाथ अपने हाथों में ले लूँ,


चूम लूँ फिर मस्तक तेरा, अंक में तुझें समेट लूँ,





 

देखकर तेरा मासूम चेहरा, मैं भी ज़रा मुस्कुरा लूँ,


रोता हुआ देख तुझे, बाहों में तुझे अपने समेट लूँ,





तेरे संग दौड़ लगाऊं, घोड़ा बन के तेरी तुझे पीठ पर बिठा लूँ,


तू जब बोले खेल लूँ , तुझे हंसा कर खुद हंस लूँ,





इन हसरतों को अपनी , समेट कर एक धागे में,


लेकर अपने मन को विश्वास में, 


बांधा है मैंने भी ये मन्नत का धागा,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


17/03/2021

शुक्रवार, 12 मार्च 2021

"बूढ़े मन का आत्मसमान"

 



"बूढ़े मन का आत्मसमान"



जिम्मेदारियों के बोझ तले जीवन निकल जाना है, 


रिक्शा हो या ज़िन्दगी हो, 


उम्र कितनी भी हो, खींचते चले जाना है,




निभाकर सारे रिश्ते जीवन के, 


एक मर्म समझ में आया,


कोई नहीं किसी का अपना,


अपनी नैया खुद खेते जाना,





उम्र की भी परवाह ना होती,


नई ऊर्जा का होता संचार,


आत्मविश्वास भी जाग जाता,


नहीं जब किसी के आगे हाथ फैलाता,





चेहरे की झुर्रियां बयाँ करती,


जीवन की संघर्ष गाथा,


आत्मसम्मान से जीवन जीने की,


आज भी इस बूढ़े तन ने ठाना,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


12-03-2021

मंगलवार, 9 मार्च 2021

हाँ, मैं एक कामकाजी स्त्री हूँ,,,,,

 हाँ,,,, मैं एक कामकाजी स्त्री हूँ,,,,,



मैं अपना घर भी संभालती हूँ, और बाहर अपना कार्य भी बख़ूबी करती हूँ,,,,,,,


हँस कर घर के सारे काम निपटाती हूँ,


फिर चेहरे पर शांत भाव लिए अपने कार्यस्थल पर अपनी जिम्मेदारी निभाती हूँ,,,


हाँ,,,, मैं एक कामकाजी स्त्री हूँ, मैं अपनी जिम्मेदारी निभाती हूँ,,,,




आख़िर तुम घर पर रह कर करती क्या हो,,,,?


इस सवाल का उत्तर भी बखूबी जानती हूँ,


क्योंकि मैं वो स्त्री हूँ, जो घर और बाहर दोनों संभालती हूँ,


हाँ मैं एक कामकाजी स्त्री हूँ ,मैं घर और बाहर की दोहरी जिम्मेदारी निभाती हूँ,,,,,,




घर की जिम्मेदारी क्या होती है, ये भला हमसे बेहतर कौन जानता है,


क्योंकि घर में दुधमुँहे बच्चे को छोड़कर, 

बाहर अपने कार्य में मन लगा पाना, 

इस स्थिति को भला हमसे बेहतर कौन जानता है,


हाँ,,, मैं एक कामकाजी स्त्री हूँ, और ये मैं बख़ूबी जानती हूँ,,,,




अरे वो तो अपने शौक के लिए नौकरी करती है,,,,,,


अरे ये कहने वालों,


डबल ड्यूटी कौन करना चाहेगा, ये भी तो बताओ,


भला तुम घर में रहकर करती क्या हो ,,,? जैसे इसका उत्तर तुमसे बेहतर कोई नहीं जानता,,,


वैसे ही, वो आखिर घर के बाहर करती क्या है, इसका उत्तर मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता,


हाँ मैं एक कामकाजी स्त्री हूँ, इसका उत्तर मैं जानती हूँ,,,,,




देखा गया है, एक औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन होती है,


एक औरत को प्रताड़ित करने वाली,

 उसे दुख देने वाली, उसे नीचा दिखाने वाली, 

उसे बदनाम करने वाली दूसरी औरत ही होती है,


पुरुष तो बेचारे नाहक ही बदनाम होते हैं,,,,,




क्यों न आज एक संकल्प करें,


एक औरत बन दूसरी औरत का सम्मान करें,


जिस तरह एक कामकाजी स्त्री तुम्हें समझती है, तुम्हें मान देती है, तुम्हारे कार्य का सम्मान करती है , 


उसी तरह तुम घर को बनाने वाली महिला भी उस कामकाजी स्त्री को समझो, उसे मान दो, और उसके कार्य का सम्मान करो,




हाँ मैं एक कामकाजी स्त्री हूँ,


मैं होम मेकर और वर्किंग वीमेन दोनों का सम्मान करती हूँ,


क्योंकि मैं होम मेकर भी हूँ


और वर्किंग वीमेन भी हूँ,


हाँ, मैं एक कामकाजी स्त्री हूँ,,,,



✍️तोषी गुप्ता✍️


08/03/2021


बुधवार, 3 मार्च 2021

हिम्मत ना खोना






 *हिम्मत ना खोना*



देख कर काँटों भरा पग,


तुम मुँह न मोड़ना,


राह में आएं कितनी भी मुश्किलें,


मग़र तुम हिम्मत ना खोना,





स्त्री का जीवन है कठिन डगर,


तुम संभलकर चलना,


कर्तव्य और अधिकार की कशमकश हो कितनी,


मग़र तुम हिम्मत ना खोना,





सायकल के पहियों सा तुम्हारा जीवन,


संतुलन तुम बनाना,


कभी थोड़ा स्वार्थी बन जाना,


मग़र तुम हिम्मत ना खोना,





ममतामयी माँ हो तुम, 


बच्चों को हौसला देना,


कभी निष्ठुर माँ बन जाना,


मग़र तुम हिम्मत ना खोना,





कभी दुर्गा कभी काली रूप धर,


खुद को दुष्टों से बचाना,


कभी त्याग की मूरत बन जाना,


मग़र तुम हिम्मत न खोना





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


03/03/2021

मंगलवार, 2 मार्च 2021

ज़िद,,,,,,,, कन्यादान

 




ज़िद



कन्यादान



कनक आईने के सामने बैठी थी। सुधा, कनक को अपने हाथों से दुल्हन के रूप में सजा रही थी। दोनों निःशब्द और मौन। कनक भाव विभोरता से सुधा को निहारे जा रही थी और सुधा उतने ही वात्सल्य भाव से कनक को सजा रही थी। 




मंडप में कनक को बिठाने के बाद सुधा कोने में जाकर अपने पति विपिन के पास खड़ी हो गई। विवाह की रस्म शुरू हो चुकी थी। पंडित ने आवाज़ लगाई कन्यादान के लिए कन्या के माता-पिता मंडप में आएं। कनक के माता-पिता मंडप की ओर बढ़े ही थे कि, सहसा कनक  ने आवाज़ लगाई, रुकिए पंडित जी, मैं चाहती हूँ आज मेरा कन्यादान मेरी दूसरी माँ यानि मेरी सास और मेरे दूसरे पिता यानि मेरे ससुर जी करें। इतने समय से खुद को रोके सुधा और विपिन की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। 




सुधा और विपिन के इकलौते बेटे की शादी के छः माह बाद ही हुए असमय मौत के बाद कनक को सुधा और विपिन ने ही संभाला था।अपनी ज़िद से कनक अपने ससुराल में ही रहती थी। सुधा ने अपनी ज़िद से कनक को बड़ी मुश्किल से दूसरी शादी के लिए राज़ी किया था। और आज कनक ने सुधा और विपिन को कन्यादान का अधिकार देकर उन्हें दुनिया की सबसे बड़ी खुशी दे दी।




इधर मंडप के नीचे सुधा और विपिन, कनक का कन्यादान कर रहे थे, उधर कनक के माता-पिता अपनी बेटी के इस फैसले से खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे। सभी की आँखों से खुशी की अविरल अश्रुधारा बह रही थी।




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


02/03/2021

पिता के जज़्बात

 



भावना/ जज़्बात/ विचार/ ख्याल


पिता के जज़्बात




हे पिता ! तुम अपनी भावनाएं बताने ,


खुद को कैसे रोकते हो,


दिल में जज़्बात होते हुए भी ,


उसे प्रदर्शित ना कर दिल में कैसे रखते हो,





बच्चे को नौ माह अपने खून से सींच,


 

अपनी कोख़ में माँ रखती है,


बच्चे के आगमन होने के बाद की रूपरेखा के लिए, 


तुम उसे अपने पसीने से सींच दिमाग़ में रखते हो, 


हे पिता ! तुम अपनी भावनाएं बताने खुद को कैसे रोकते हो,





बच्चे के जन्म के बाद सारी रात जागकर,


 माँ रतजगा करती है,


बच्चे को चैन से ठंडी हवा में सुलाने,


तुम दिन भर खुद को धूप में जलाते हो,


हे पिता ! तुम अपनी भावनाएं बताने खुद को कैसे रोकते हो,





बच्चे को टिफ़िन देकर ,


उसे स्कूल भेजने तैयार माँ करती है,


उसके उच्चस्तरीय पढ़ाई लिखाई की जिम्मेवारी,


 तुम पूरी करते हो,


हे पिता ! तुम अपनी भावनाएं बताने खुद को कैसे रोकते हो,





बच्चे को दुनिया में एक सफल इंसान बनने,


संस्कार माँ देती है,


उसे इस क्रूर दुनिया में,


 आगे बढ़ने का हौसला तुम देते हो,


हे पिता ! तुम अपनी भावनाएं बताने खुद को कैसे रोकते हो,





हे पिता ! तुम अपनी भावनाएं बताने,


खुद को कैसे रोकते हो,


दिल में जज़्बात होते हुए भी,


 उसे प्रदर्शित ना कर दिल में कैसे रखते हो,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻

01/03/2021

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