मेरी बगिया
*मेरी बगिया*
अक़्सर अपनी ख्वाहिशों के समंदर में,
खो जाती हूँ,
मन के भीतर दबी,
इच्छाओं के चक्रव्यूह में,
खुद को उलझा पाती हूँ,
मन उड़ जाना चाहता है,
स्वच्छंद पंछी सा,
उन्मुक्त गगन की ,
ऊंचाइयों में,
जैसे,खो जाना चाहता हो,
आसमान की,
बुलंदियों में,
लेकिन, ख्वाहिशें तो,
अधूरी ही रह जाती हैं,
जैसे तितली,
मंडराती रहती,
मोह और नेह बरसाती,
रंग बिरंगे फूलों से भरी,
बगिया में,
वैसे ही मेरा मन बसता,
मेरे परिवार रूपी बगिया में,
मन कितना ही ख्वाहिशों की
उड़ान उड़े,
थम सा जाता है,
अपनों की ख्वाहिशों के सामने,
क्योंकि अपनों की,
पूरी होती ख्वाहिशों से महकती,
उनकी खुशियाँ,
मेरी बगिया की ,
रौनक बढ़ा देती,
उनकी ख्वाहिशों को पूरी होते,
अपनी बगिया महकते देख,
एक आस सी जागती है दिल में,
कि ख्वाहिशें तो पूरी भी होती हैं,
और एक बार फिर,
मैं अपनी ख्वाहिशों के समंदर में,
खो जाती हूँ,
इस उम्मीद के साथ,
कि महकते बगिया में,
एक खूबसूरत फूल,
मेरी ख्वाहिशों का भी होगा,
*✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻*
22-05-2022