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शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

पापा की शेरनी


 


पापा की शेरनी




पापा की परी नहीं अब पापा की शेरनी है बनना,


पापा की कमज़ोरी नहीं अब पापा की शक्ति है बनना,





नन्हें कदमों से अब आकाश है नापना,


कदम से मिला कदम पापा के साथ है बढ़ना,





नन्ही हथेलियों से पापा का हाथ थामे चलना,


फिर चलकर आगे पापा की हिम्मत बन बढ़ना,





पैरों पर खुद के खड़ा होकर पापा की इच्छा पूरी करना,


पहुंच पर लक्ष्य पर अपने ,पापा की उम्मीदों पर खरा उतरना





तोड़कर सारे रूढ़ी रिवाज़

ना बनना कभी किसी के हाथों का खिलौना, 


 काम अनोखा करके जग में पापा का नाम रोशन करना,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


23/04/2021

बुधवार, 21 अप्रैल 2021

सतरंगी सपने

 सतरंगी सपने



आज अनु की ज़िंदगी का बहुत बड़ा दिन था। आज उसकी शादी थी। वह सुबह के रस्मों में व्यस्त थी तभी उसकी कोचिंग से कॉल आया उसने यूपीएससी में अपने शहर में टॉप किया था।  शुरू से ही वो अफ़सर बनने के सतरंगी सपने संजोई हुई थी। इसी बीच अमोल का रिश्ता अनु के लिए आया। बड़े पद पर आसीन अमोल ने शादी के पहले ही अनु को अपनी पढ़ाई लिखाई जारी रखने अपनी सहमति दी थी लेकिन जॉब करने के संबंध में उसने यही कहा था कि स्थिति देखकर ही कुछ करेंगे। रस्मों के बीच उलझी अनु के लिए शहर में टॉप करना उसके सतरंगी सपनों को पँख मिलने के समान था। थोड़ा समय मिलते ही अनु ने अमोल से बात करने की ठानी। इधर अमोल ने भी अनु के शहर में टॉप करने की खबर सुनकर बहुत खुश था। अनु का फोन आते ही अमोलफ़ ने अनु को बधाई देते हुए उसके भावी जॉब के लिए कई योजनाएं बताई। अनु को तो जैसे मनचाही चीज़ मिल गई हो। उसे अपने सतरंगी सपने पूरे होते नज़र आ रहे थे। और उसकी शादी का दिन उसकी जिंदगी का बहुत खुशियों भरा दिन बन गया।


✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


20/04/2021

सोमवार, 19 अप्रैल 2021

बेवजह ना लगाओ अनुमान


*बेवजह ना लगाओ अनुमान*



बेवजह ना लगाओ अनुमान,


किसी की बातों का,


कि वो सही है या गलत,


सच है या झूठ,


बस मान लो उनकी बात,


कि हर शख़्स ग़लत नहीं होता,





बेवजह ना लगाओ अनुमान,


किसी के अहसासों का,


कि उसकी भावनाएं


अपनापन है या दिखावा,


बस महसूस कर लो उसकी भावनाएं,


कि हर शख़्स छल और दिखावा नहीं करता,





बेवजह ना लगाओ अनुमान,


किसी के अरमानों का,


कि उसके अरमान,


उसके अपने हैं या गैरों के,


बस देख लो उसके अरमानों को उसकी नज़र से,


कि हर शख़्स केवल अपने लिए नहीं जीता,





बेवजह ना लगाओ अनुमान,


किसी की मंज़िल का,


कि उसकी मंज़िल पास है

या दूर,


ग़र कुछ ना कर सको तो सिर्फ जाने दो उसे,


उसकी मंज़िल की ओर,


कि हर शख़्स छोटी सफ़लता से संतुष्ट नहीं होता,





बेवजह ना लगाओ अनुमान,


किसी की हंसी का,


कि उसकी हंसी,


उसके दिल से है या फिर खोखली है,


बस हंस लो उसके साथ उन पलों में,


कि हर शख़्स अंदर से ख़ाली नहीं होता,






बेवजह ना अनुमान लगाओ,


किसी की शिकायतों से,


कि उसकी शिकायतें,


बेमानी है या दिल से है,


बस समझने की कोशिश करो उसकी भावनाओं को,


कि हर शख़्स की शिकायत का मक़सद,


तुम्हें दुःख पहुँचाना नहीं होता,






बेवजह ना अनुमान लगाओ,


किसी के प्रेम का,


कि उसके प्रेम में,


वफ़ा है या दिखावा है,


बस रंग जाओ उसके प्रेमरंग में एक बार,


कि हर शख़्स बेवफ़ा नहीं होता,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


19/04/2021

गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

शुभागमन

 शुभागमन 



"अरे नीता, चलो भाई, हमें देर हो रही है," नवीश ने कार में बैठते हुए नीता को आवाज़ लगाई। 

नीता भी भागती हुई सी कार में आकर बैठ गई। नवीश ने कार आगे बढ़ाई। कुछ देर दोनों मौन ही रहे।

अचानक नीता ने कहा, "नवीश हम ठीक कर रहे हैं?"

नवीश ने उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर हल्के से दबाते हुए कहा, "हाँ" और दोनों मुस्कुरा उठे। 

शादी को ग्यारह वर्ष हो चुके थे लेकिन नीता को गोद अब तक सूनी थी। शादी के दो वर्ष बाद ही एक सड़क हादसे में नीता और नवीश बुरी तरह घायल हो गए थे। उस समय नीता का दूसरा माह चल रहा था। दोनों की जान तो बच गई लेकिन नीता ने अपना बच्चा खो दिया डॉक्टर ने बताया कि अब वह कभी माँ नहीं बन सकती। दोनों ठीक होकर घर आ गए लेकिन नीता को हमेशा एक बच्चे की चाहत रही।

कार अब अपने गंतव्य तक पहुँच चुकी थी। दोनों ने ऑफिस में जाकर कुछ ऑफिशियल फॉर्मेलिटी पूरी की। कुछ ही देर बाद एक महिला ने एक छोटे से बच्चे को नीता की गोद में डाल दिया। मात्र कुछ ही महीनों का वो बच्चा टुकुर टुकुर नीता को निहार रहा था। नीता उसे देखकर मंत्र मुग्ध हो गई। उसे छूने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि बच्चे ने अपने छोटे से हाथों से नीता की उँगली थाम ली। अचानक नीता के होठों से आवाज़ आई,,,, "शुभ" । 


नीता और नवीश की आँखों में अब खुशी के आँसू छलक रहे थे। उन्होंने कृतज्ञता से सामने बैठी ऑफिस इंचार्ज को धन्यवाद किया। और इस नन्हीं सी जान को लेकर चल पड़े। दोनों की आँखों से अब भी खुशी के आँसू छलक रहे थे, उनके जीवन में अब इस नन्हीं सी जान शुभ का शुभागमन जो हुआ था।


✍️तोषी गुप्ता✍️


14/04/2021

दिल कहता है,,,,

 *दिल कहता है*




कर के किसी की मदद मुसीबत में,


निकाल कर किसी को ग़म के अंधेरों से,


बचा कर किसी को राह की ठोकरों से,


दिल कहता है अब भूल जा सब,,,,,,




कर के किसी से गिले शिकवे,


पालकर कुछ ज़ख्म पुराने,


हो किसी से ग़र बदले का भाव,


दिल कहता है अब भूल जा सब,,,,,





बातों के कुछ सिलसिले हों,


दुखों के कई अम्बार हों,


या रेखांकित कुछ हादसे हों


दिल कहता है अब भूल जा सब,,,




धुंधली कोई तस्वीर हो,


दर्द का कोई सैलाब हो,


या आँखों में अश्क़ के मोती हों


दिल कहता है अब भूल जा सब,,,




बनाकर भविष्य की नई तस्वीर ,


बुनकर सपनों के नए ताने- बाने,


मुस्कुरा कर जीवन के हर राह पर,


दिल कहता है , हर ग़म भूल अब आगे बढ़,,,,,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


14/04/2021

परिवार पर्व


*परिवार पर्व*
 


उत्सव तो उसी दिन हो जाता है,

जब सारा परिवार साथ मिल जाता है,

सुबह से घर में बच्चों की धमा चौकड़ी होती है,

किचन में दादी, मम्मी, चाची,तायी होती हैं,

पकवानों की सोंधी खुशबू साथ होती है,

पकवानों साथ सबकी गप्पें भी हज़ार होती,

महक महक जाता घर का कोना कोना,

ठहाकों की गूंज के बीच उदासी का खोना,

संग मिलकर भोजन करना,

और घंटो खाने की टेबल पर गप्पें मारना, 

चाचा , पापा, दादा , ताया के संग कैरम की टकाटक होती,

शाम को छत पर जाकर पतंगबाजी की अनोखी पैंतरे होती,

देर रात तक किस्से कहानियों का दौर,

चाची, मम्मी , दादी , तायी की शिकवे शिकायतों का दौर,

थककर चूर होकर सबका सो जाना,

फिर परिवार पर्व के सपनों में खो जाना,

सच ही है, उत्सव तो उसी दिन हो जाता है,

जब सारा परिवार साथ मिल जाता है,,,,,




✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻

12/04/2021

शनिवार, 10 अप्रैल 2021

मन की आँखों से,,,,,,,

 



मन की आँखों से,,,,




कैद में है नज़र ,


बाहरी दुनिया की चकचौंध में,


जहाँ देखती है ,


नज़र केवल वही,


जो दुनिया में केवल भ्रम है,


और हम बंधे हुए हैं नज़रों के,


 इस मोहजाल में,


असल में नज़र हमें ,


वही दिखाती है ,


जो हम देखना चाहते हैं,


तो क्यों न आज एक काम करें,


अपने मन की नज़र को


पाक साफ़ करें,


अपने दिल को भाव विभोर करें,


दुनिया के प्रेम और दर्द से,


फिर एक बार सरोकार करें,


लोगों का दुख दर्द बांट,


प्रेम का संचार करें,


मन की आँखों से,


दुनिया की खूबसूरती देखें,


दूसरे की पीड़ा समझें,


भूलकर बैर का भ्रम,


नए सुभाव का संचार करें!!





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻

10/04/2021

गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

रिश्ता

 *रिश्ता*



ज़िन्दगी अक़्सर उस मुक़ाम पर


 लाकर खड़े कर देती है,


जहाँ हम सिक्के के दूसरे पहलू


 की ओर होते हैं,


सामने वाला भी सही होता है


उसके नजरिये से,


और हम भी सही होते हैं,


अपने नज़रिये से,


बीच में पिसता है तो सिर्फ मन,


जो जानता तो है कि,


सामने वाला भी सही है,


लेकिन ये मानने को तैयार नहीं,


और स्वयं जब सही है तो वह


अपने को गलत माने क्यों,


ये अन्तर्द्वंद्वता आती क्यों है,


कभी सोचा है,,,,,???





अब बाहर भी आओ,


भ्रम के इस मायाजाल से ,


मान भी जाओ, 


नज़रिये की इस भूल भुलैया को,


जब भी मन डांवाडोल से लगे,


रख लेना खुद को,


 सामने वाले कि जगह पर,


मान लेना खुद को ,


एक बार 


वहम से ग़लत,


और संभाल लेना,


 रिश्तों की डोर को, 


फिर ये रिश्ता 


कितना खूबसूरत हो सकता है,


कभी सोचा है,,,,,???





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


07/04/2021

मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

विलंब /देर

विलंब / देर




देर होने से पहले , ज़रा संभल जाओ,

दो गज दूरी और मास्क लगाओ,





ये वक़्त नहीं हंसी ठिठोली का,

वक़्त ज़रा नाजुक है, संभलने का,





रिश्तेदारियां दूर से निभाने का,

ज़रूरत पड़ने पर दूर से ही सहयोग करने का,





चार लोगों से तो तुम बाद में भी मिल लोगे,

संक्रमण ग़र हो गया तो अपनों से दूर हो जाओगे,





ज़रूरी नहीं शरीर तुम्हारा साथ दे,

हुई रोग प्रतिरोधकता कम तो जान से हाथ धो बैठोगे,





अभी भी देर ना हुई, संभल जाओ तुम,

अपनों के लिए सही, अपनों की बातें सुनो तुम,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻

05/04/2021

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

कोयले की दलाली में हाथ काले,,,,

 कोयले की दलाली में हाथ काले,,,,,,,,


संक्षिप्त में,,,, बुरे काम का बुरा नतीजा,,,,,,, अर्थात बुरे काम करके कोई भी उसका सुखद परिणाम प्राप्त नहीं कर सकता। जिस प्रकार यदि कोई कोई की दलाली करता है, तो कोयले की प्रकृति के अनुसार हाथ काले होते ही हैं, उसी तरह कोई भी गलत कार्य उसकी प्रकृति के अनुसार ही बुरे परिणाम ही देती है। 

         जैसे यदि कोई रिश्वत लेकर अपने शौक पूरे करता है, तो देर सबेर उसे उसका बुरा परिणाम भुगतना ही पड़ता है। इस उदाहरण से हम समझ सकते हैं जिसमें लोकोक्ति *कोयले की दलाली में हाथ काले* पूर्ण रूपेण खरी उतरती है।


✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


01/04/2021

नयी उम्मीदों की सुबह,,,,,


 


नयी उम्मीदों की सुबह




बहुत कुछ साथ लेकर आती है,


नयी उम्मीदों की सुबह,


नये एहसास, नयी इच्छाएँ,


और एक कप चाय भी तो,,,


बड़ी हसीन होती है वो सुबह,


खुशनुमा एहसास होता है वो,


हर एक चाय की घूँट के साथ,


अख़बार के पन्ने पलटती नज़र,


वो चिड़ियों की चहचहाना,


दूर क्षितिज से नारंगी गोले का धीरे धीरे पूरे आसमान में छा जाना,


फिर धरती को अपने नारंगी रोशनी से नहलाना,


पत्तों पर चमकती ओस की बूँदों का शरमा के सकुचाना, 


और रात भर अलसाई कोपलों का,


नयी रोशनी में, नयी उम्मीदों के साथ सर उठाना,


सचमुच, बहुत कुछ साथ लेकर आती है,


नयी उम्मीदों की सुबह,,,,,





✍🏻तोषी गुप्ता✍🏻


02/04/2021

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