इरादे आजमाती मुश्किलें
"मुश्किलें दिल के इरादे आजमाती हैं ,
स्वप्न के परदे निगाहों से हटाती हैं,
हौसला मत हार गिर कर ओ मुसाफिर,
ठोकरें इंसान को जीना सिखाती हैं"
आज बारहवी का रिजल्ट निकलने वाला है..........मन के किसी कोने में एक डर समाया हुआ है कि कल के पेपर में ना जाने क्या पढने को मिले, कारण............ परीक्षाफल निकलने के साथ ही अख़बारों में हर साल कुछ केस पढने को मिल ही जाते हैं कि फलां ने फेल होने पर फंसी लगा ली या फिर फेल होने के डर से किसी ने आत्महत्या कर ली या आत्महत्या का प्रयास किया या घर से भाग गया. एक बात मेरी समझ से परे है कि न्यू जेनरेशन के ये बच्चे इतने प्रतिभावान और समझदार होते हुए भी इतनी नासमझी की हरकत क्यों और कैसे कर बैठते हैं? और ये भी कि ये ऊर्जावान पीढ़ी इतनी निराशाजनक कब से हो गई?
विद्यार्थियों की इस प्रवृत्ति के पीछे जितना जिम्मेदार वह स्वयं है, उतने उसके माता-पिता या शिक्षक भी हैं. आजकल पेरेंट्स अपने बच्चो से इतनी ज्यादा उम्मीदें रखते हैं कि किसी भी कीमत पर अपने बच्चे को वे अपने परिचितों के बच्चो से किसी भी मायने में कमतर नहीं देख सकते उसी तह शिक्षकों का दोहरा दबाव इस कॉम्पिटिशन के युग में एक विद्यार्थी की मनः स्थिति में क्या प्रभाव डालता होगा इसका आंकलन आप स्वयं कर सकते हैं.
सभी अपना एक लक्ष्य निर्धारित करके रखते हैं. माना कि वह अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल हो गया तो ऐसा भी तो नहीं कि वह और किसी लक्ष्य को पूरा नहीं कर सकता. यदि एक छात्र इंजीनियरिंग की परीक्षा में असफल होकर आत्महत्या जैसा कदम उठाता है तो यह उसकी बेवकूफी होगी कारण कि वह अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के जरिये अपना भविष्य बना सकता है
असफलता का समाधान स्वयं को नुकसान पहुचाना तो नहीं होता और ये भी ज़रूरी नहीं कि एक बार की असफलता हमेशा की असफलता हो.कोशिश करने से तो ज़टिल से ज़टिल कार्य भी पूरा हो जाता है, फिर निर्धारित लक्ष्य क्यों प्राप्त नहीं किया जा सकता..................
"कौन कहता है आसमां में सुराख़ नहीं होता, एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों..................."