भक्ति का एक रूप यह भी.................
गणेशोत्सव से शुरू हुआ सार्वजनिक उत्सव दुर्गोत्सव आते तक आने चरमोत्कर्ष पर पंहुच जाता है। हर तरफ़ खुशी और जशन का माहौल । लेकिन क्या आपको कभी ऐसा नही लगता की इस खुशी और जशन के माहौल में लोग अपनी सीमा , अपनी मर्यादा भूल जाते है। पूजनीय देवी देवताओ क पवित्र रूप का मखौल लोग इस तरह उड़ते है जैसे अपनी फिक्र धुएं में उड़ा रहे हो। कभी गणेश जी को पेप्सी की बोत्तल पकड़ा दिए तो कभी उनके हाथ में एक डंडा पकड़ा क उन्हें पोलिस बना दिए. कभी क्रिकेट का बैट थमा के सचिन तेंदुलकर बना दिया तो कभी उनके हाथ में ऐ के ४७ पकड़ा कर उन्हें संजय दत्त बना दिया । जो लोग गणेश जी के इन प्रतिरूपो का निर्माण करते है उनकी हिम्मत देवी माँ के किसी प्रतिरूप के निर्माण के समय कहा चली जाती है । वही गणेश जी के इन प्रतिरूपो को आम जनता के समक्ष परोसने वाले लोग क्या कभी देवी माँ के किसी रूप का मखौल उड़ने की हिम्मत कभी कर पाएंगे। शायद नही...........
अब हम थोडी बाते करते है देवी देवताओ के विसर्जन के बारे में। गणेश ए़वं दुर्गा विसर्जन के समय लोंगो का उत्साह देखते ही बनता है लेकिन.........इस जबरदस्त उत्साह का स्वरुप क्या होता है..................बड़े बड़े डी.जे. सेट के पीछे एक दुसरे के ऊपर गिरते पड़ते ( जिसे वे अपनी भाषा में डांस करना कहते है ) बेसुधे (?)लोग (क्योकि डी.जे. में डांस का मज़ा होश में रहकर तो नही ले सकते ) । रात भर जिस डी.जे.की धुन पर वो लोग थिरकते है वो निश्चित ही भजन तो नही होते होंगे । एक तरफ एक ग्रुप जो बड़ी ही भक्ति भावः से भगवन का भजन करते हुए नज़र आते है, वही दूसरी तरफ ये दूसरा ग्रुप जो की अपनी सारी हदों को पार करते हुए , सारी मर्यादाए तोड़ते हुए उस रूप में नज़र आता है जिस रूप में वो अपने परिवार वालो के सामने कभी नज़र नही आना चाहता । और समाज के तथाकथित बुध्हिजिवी वर्ग उस समय अपनी आँखों में काली पट्टी बाँध अपनी नीद पुरी कर रहे होते है । या यु कहे की वो तथाकथित वर्ग भी अपने कानो में रुई भर कर भीड़ में कही शामिल हो.............. ।