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शनिवार, 4 अप्रैल 2009

कथकली का मजाक कंहा तक उचित है...............


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी



जी
टीवी में प्रसारित "Dance India Dance" जिसमे सुपर स्टार मिथुन चक्रवर्ती शो के ग्रैंड मास्टर हैं उनकी उपस्थिति में 04th april रात 10 बजे प्राचीन भारतीय नृत्य "कथकली" का प्रदर्शन एक हिन्दी फिल्मी गाने पर किया गया थाभारतीय शास्त्रीय नृत्य के लिए यह बहुत ही गौरव की बात है की अब शास्त्रीय नृत्य हर ज़गह लोकप्रिय हो रहे है लेकिन "डांस इंडिया डांस" के इस शो को देखने के बाद शास्त्रीय नृत्य प्रेमियों के लिए यह एक बहुत ही शर्मनाक और दुःख का विषय है की उपरोक्त प्रोग्राम में कथकली नृत्य की किस तरह धज्जियाँ उडाई गई हैबहुत ही फूहड़ गाने "चुम्मा -चुम्मा दे दे " जैसे फिल्मी गाने पर कथकली जैसे प्राचीन नृत्य शैली पर नृत्य का भौंडा प्रदर्शन आख़िर कंहा तक उचित है ? शायद इस डांस की choreographer "मास्टर गीता" को भी यह अहसास नही की उन्होंने कुछ नया प्रयोग करने के चक्कर में सिर्फ़ कथकली ही नही पूरे भारतीय शास्त्रीय नृत्य का किस तरह मजाक उड़ाया है? शायद वो ये भूल गई थी की शास्त्रीय नृत्यों की जीवन्तता आज भी बरक़रार है उनका अपना एक महत्व है ,उनकी अपनी अलग एक पहचान है.प्रयोग तो शास्त्रीय नृत्यों में भी किए जाते है लेकिन झूठी और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का इससे आसन रास्ता शायद उन्हें नही मिला होगा जो मास्टर गीता ने कथकली नृत्य में "चुम्मा-चुम्मा दे दे" गीत का प्रयोग किया.यदि वो इस नृत्य शैली में किसी और गीत का प्रयोग करती तो शायद शास्त्रीय नृत्य प्रेमियों को इतना दुःख नही होता.

10 टिप्पणियाँ:

toshi gupta 4 अप्रैल 2009 को 11:48 pm बजे  

kathakali is our traditional dance and what the Ztv is doing.......it's samefull thing.

Virup 8 अप्रैल 2009 को 1:08 am बजे  

yes I think the song selection was not right It must be understood by every Indians at least, that these dances are the identity of our nation and we must respect it and protect it. yes any one is free to do experiment with the Vidha but be in the limits of sanctity.

बेनामी,  13 अप्रैल 2009 को 7:31 pm बजे  

बढिया प्रयास.
बधाई और शुभकामना.

नवनीत नीरव 13 अप्रैल 2009 को 8:20 pm बजे  

Apne ek aise mudde ko uthaya hai jispar log ab kam sochne lage hai.Jab nuksan desh ki sanskriti aur kala kahi ho raha hai.Logon ko ise gambhirta se lena chahiye.
Navnit Nirav

श्यामल सुमन 14 अप्रैल 2009 को 5:18 am बजे  

भले चर्चा कम हो पर इस बिषय को जीवंत बनाने की कोशिश एक सराहनीय प्रयास है। आपके प्रयास के लिए दो त्वरित पँक्तियाँ-

जड़ से कटकर पेड़ का क्या जीना आसान?
कला संस्कृति मूल है इसका हो सम्मान।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

ज्योत्स्ना पाण्डेय 14 अप्रैल 2009 को 10:48 am बजे  

चिटठा जगत में आपका हार्दिक अभिनन्दन ......
लेखन के लिए शुभकामनाएं ...........

बेनामी,  14 अप्रैल 2009 को 7:53 pm बजे  

Apne lekh par pahla comment apna hi.....alag sa laga.
Bhartiyata ka majak udakar apne aapko lime light me lana kuch logo ki aadat banti ja rahi hai, iske virudh aawaj uthakar aapne achchhi shuruaat ki hai,mai aapke sath sath purn tareeke se sahmat hu,

---------------------------"VISHAL"

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) 15 अप्रैल 2009 को 10:58 pm बजे  

मुश्किल तो यही है कि आज सभी अच्छी चीज़ों का मज़ाक बनाया जाता है.....मगर कोई कलाकार उसका विरोध तक नहीं करता....बल्कि कलाकार और अकलाकार सब के सब बड़े ही चाव से सब कुछ देखते रहते हैं....गोया पता नहीं कितनी गंभीर चीज़ दिखाई या सुनाई जा रही हो....और इसी तरह सब चीज़ों की एकदम से भद्द पीट दी जा रही....हम चुचाप सब कुछ देखते जा रहे हैं....बिना यह जाने समझे कि एक दिन को हमारी भी इसी तरह भद्द पीटने वाली है.....!!

Brajendra Kumar Gupta 12 जून 2009 को 7:52 am बजे  

बहुत बढिया प्रयास है ।
बधाई
धन्‍यवाद

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